16-02-96  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

‘‘डायमण्ड जुबली वर्ष में विशेष अटेन्शन देकर समय और संकल्प के खज़ाने को जमा करो’’

आज त्रिमूर्ति रचता शिव बाप बच्चों को तीन बधाइयाँ दे रहे हैं। बच्चे बाप को बधाई देने आये हैं, तो बाप रिटर्न में तीन बधाइयाँ दे रहे हैं। एक शिव जयन्ती की, दूसरी डायमण्ड जुबली की और तीसरी वर्तमान समय उमंग- उत्साह से सेवा करने की बधाई। तो तीन बधाइयाँ चारों ओर के बच्चों को बापदादा दे रहे हैं। बाप के पास सबके दिलों के उमंग-उत्साह के सेवा के समाचार पहुँचते रहते हैं। ये अलौकिक जयन्ती सारे कल्प में नहीं होती है। क्योंकि सारे कल्प में चाहे देव आत्मा हो, चाहे महात्मा हो, चाहे साधारण आत्मायें हो लेकिन आत्मायें, आत्मा की जयन्ती मनाते हैं। और इस संगम पर आप श्रेष्ठ आत्मायें किसकी जयन्ती मनाने आये हो? परम आत्मा की और परम आत्मा बाप बच्चों की जयन्ती मनाते हैं। सतयुग-त्रेता में भी परम आत्मा आपकी जयन्ती नहीं मनायेंगे वा आप परमात्मा की जयन्ती नहीं मनायेंगे। तो कितने पद्म-पद्म-पद्म गुणा भाग्यवान आत्मा हो। ऐसे कभी अपने श्रेष्ठ भाग्य को स्वप्न में भी सोचा होगा? नहीं सोचा? लेकिन आज साकार रूप में मना रहे हैं। तो खुशी है ना! देखो चाहे देश वाले, चाहे विदेश वाले, चाहे मधुबन वाले, जो भी इस ग्रुप में बैठे हैं, कितना लक्की हैं! अन्दर क्या गीत गाते हो? वाह मेरा भाग्य। और बाप भी गीत गाते हैं वाह बच्चों का भाग्य। विशेष सेवा का ग्रुप बैठा है ना, सब तरफ के विशेष हैं ना, तो विशेष सेवा का विशेष प्रत्यक्षफल प्राप्त करने वाली आत्मायें हो। तो बाप भी ऐसे श्रेष्ठ बच्चों को देख हर्षित होते हैं। बच्चे ज्यादा हर्षित होते हैं या बाप होते हैं? दोनों। या बाप ज्यादा होता है? आप ज्यादा होते हो। अच्छा।

आज बापदादा चारों ओर के सेवाधारी डायमण्ड की माला को देख रहे हैं। आप सभी माला में हो ना? बाप के गले में डायमण्ड बन चमकने वाले माला के दाने हो या और कोई है? आप ही हो और नहीं? लोग कहते हैं कि 108 की माला लेकिन बापदादा के गले में आप सभी डायमण्ड्स की कितनी लम्बी माला है? 108 तो आप नीचे बैठे हुए हो जायेंगे। पीछे वाले भी हो ना? पहले पीछे वाले। देखो ये भी त्याग का प्रत्यक्ष फल है कि बापदादा पीछे वालों को ज्यादा मुबारक देते हैं। और उससे ज्यादा नीचे वालों को।

बापदादा हर एक बच्चे की विशेषता को देखते हैं। चाहे सम्पूर्ण नहीं बने हैं, पुरूषार्था हैं लेकिन ऐसा एक भी बाप का बच्चा नहीं है जिसमें कोई विशेषता नहीं हो। सबमें विशेषता है। सबसे पहली विशेषता तो कोटो में कोई के लिस्ट में तो हैं ना। और विशेषता ये है कि बड़े-बड़े तपस्वी महान् आत्मायें, 16108 जगत्गुरू, चाहे शास्त्रवादी हैं, चाहे महामण्डलेश्वर हैं, लेकिन बाप को नहीं जाना और बाप के सभी बच्चों ने बाप को तो जान लिया ना। तो बाप को जानना यह कितनी बड़ी विशेषता है। दिल से ‘मेरा बाबा’ तो कहते हैं ना। मेरा कह कर अधिकारी तो बन गये ना। तो इसको क्या कहेंगे? जिसने बाप को परख लिया, पहचान लिया, तो पहचानना ये भी बुद्धि की विशेषता है, परखने की शक्ति है। तो आप सभी के परखने की शक्ति श्रेष्ठ है। अच्छा-आज विशेष मनाने आये हो ना? आज मनाने का दिन है या आज भी सुनने का दिन है? सुनना भी है? अच्छा।

तो शिवरात्रि कहते हैं लेकिन आपके लिए अभी क्या है? आपके लिए रात्रि नहीं है तो क्या है? अमृतवेला है? आप तो रात्रि से निकल गये या थोड़ी-थोड़ी रात्रि अभी है? छुट्टी ले गई? किसी भी प्रकार का अंधकार आता है कि खत्म हो गया? अमृतवेला सदा वरदान का समय है तो आपको रोज़ वरदान मिलता है ना? तो आप कहेंगे बाप आता रात्रि में है लेकिन हमारे लिये अमृतवेला गोल्डन मोर्निंग, डायमण्ड मोर्निंग हो गई। तो ऐसे वरदानी स्वरूप अपना देखते हो? माया वरदान भुला तो नहीं देती? आती है माया? कभी-कभी तो आती है? माया तो लास्ट घड़ी तक आयेगी। ऐसे नहीं जायेगी। लेकिन माया का काम है आना और आपका काम है दूर से भगाना। आ जावे फिर भगाओ, ये नहीं। ये टाइम अभी समाप्त हुआ। माया आवे और आपको हिलावे फिर आप भगाओ, टाइम तो गया ना! लेकिन साइलेन्स के साधनों से आप दूर से ही पहचान सकते हो कि ये माया है। इसमें भी टाइम वेस्ट नहीं करो और माया भी देखती है ना कि चलो आने तो देते हैं ना, तो आदत पड़ जाती है आने की। जैसे कोई पशु को, जानवर को अपने घर में आने की आदत डाल दो फिर तंग होकर भगाओ भी लेकिन आदत तो पड़ जाती है ना! और बाप ने सुनाया था कि व्ई बच्चे तो माया को चाय-पानी भी पिलाते हैं। चाय-पानी कौन सी पिलाते हो? पता है ना? क्या करूँ, कैसे करूँ, अभी तो पुरूषार्था हूँ, अभी तो सम्पूर्ण नहीं बने हैं, आखिर हो जायेंगे - ये संकल्प चाय-पानी हैं। तो वो देखती है चाय-पानी तो मिलती है। किसी को भी अगर चाय-पानी पिलाओ तो वो जायेगा कि बैठ जायेगा? तो जब भी कोई परिस्थिति आती है तो क्यों, क्या, कैसे, कभी-कभी तो होता ही है, अभी कौन पास हुआ है, सबके पास है - ये है माया की खातिरी करना। कुछ नमकीन, कुछ मीठा भी खिला देते हो। और फिर क्या करते हो? फिर तंग होकर कहते हो अभी बाबा आप ही भगाओ। आने आप देते हो और भगाये बाबा, क्यों? आने क्यों देते हो? माया बार-बार क्यों आती है? हर समय, हर कर्म करते, त्रिकालदर्शी की सीट पर सेट नहीं होते हो। त्रिकालदर्शी अर्थात् पास्ट, प्रेजेन्ट और फ्युचर को जानने वाले। तो क्यों, क्या नहीं करना पड़ेगा। त्रिकालदर्शी होने के कारण पहले से ही जान लेंगे कि ये बातें तो आनी हैं, होनी हैं, चाहे स्वयं द्वारा, चाहे औरों द्वारा, चाहे माया द्वारा, चाहे प्रकृति द्वारा, सब प्रकार से परिस्थितियाँ तो आयेंगी, आनी ही हैं। लेकिन स्व-स्थिति शक्तिशाली है तो पर-स्थिति उसके आगे कुछ भी नहीं है। पर-स्थिति बड़ी या स्व-स्थिति बड़ी? या कभी स्व-स्थिति बड़ी हो जाती, कभी पर-स्थिति? तो इसका साधन है - एक तो आदि-मध्य-अन्त तीनों काल चेक करके, समझ कर फिर कुछ भी करो। सिर्फ वर्तमान नहीं देखो। सिर्फ वर्तमान देखते हो तो कभी परिस्थिति ऊंची हो जाती और कभी स्व-स्थिति ऊंची हो जाती। दुनिया में भी कहते हैं पहले सोचो फिर करो। नहीं तो जो सोच कर नहीं करते तो पीछे सोचना पश्चाताप का रूप हो जाता है। ऐसे नहीं करते, ऐसे करते, तो पीछे सोचना अर्थात् पश्चाताप का रूप और पहले सोचना ये ज्ञानी तू आत्मा का गुण है। द्वापर-कलियुग में तो अनेक प्रकार के पश्चाताप ही करते रहे हो ना? लेकिन अब संगम पर पश्चाताप करना अर्थात् ज्ञानी तू आत्मा नहीं है। ऐसा अपने को बनाओ जो अपने आपमें भी, मन में एक सेकण्ड भी पश्चाताप नहीं हो। तो इस डायमण्ड जुबली में विशेष सारे दिन में एक समय और दूसरा संकल्प-इन दो खजानों पर अटेन्शन रखना। वैसे खजाने तो बहुत हैं लेकिन विशेष इन दो खजानों के ऊपर अटेन्शन देना है। हर दिन संकल्प श्रेष्ठ, शुभ कितना जमा किया? क्योंकि पूरे कल्प के लिये जमा करने की बैंक अभी खुलती है। सतयुग में ये बैंक जमा की बन्द हो जायेगी। ये बैंक भी नहीं होगी, दूसरी बैंक भी नहीं होगी। इतना धन आपके पास होगा जो किसी से भी कुछ लेने की आवश्यकता नहीं होगी। बैंक में क्यों रखते हैं? एक तो सेफ्टी और दूसरा ब्याज मिलता है। कई बहुत होशियार होते हैं जो ब्याज से ही चलते रहते हैं। और इस समय तो अगर ऐसे होशियार हैं तो अच्छे हैं, जमा करते हैं ना। लेकिन ब्याज किस तरफ लगाते हैं वो देखना है। तो सतयुग में न ये बैंक होगी, न रूहानी खजाने जमा करने की बैंक होगी। दोनों बैंक नहीं होगी। इस समय एक का पद्मगुणा करके देने की बैंक है लेकिन एक जमा करेंगे तब पद्म मिलेगा, ऐसे नहीं। हिसाब है। तो डायमण्ड जुबली में सच्चे डायमण्ड बनना ही है, ये तो पक्का है ना? कि कभी संकल्प आता है कि पता नहीं बन सकेंगे या नहीं? पता नहीं, तो नहीं आता? क्या भी हो, त्याग करना पड़े, तपस्या करनी पड़े, निर्मान बनना पड़े, कुछ भी हो जाये, बनना जरूर है। है? बोलो, हाँ जी या ना जी? (हाँ जी) देखना, हाँ जी कहना तो बहुत सहज है। हाँ जी बनना इसमें अटेन्शन देना पड़ेगा। पहला-पहला त्याग ये ‘मैं’ शब्द है। ये ‘मैं’ शब्द है बहुत पुराना लेकिन आजकल ये बहुत रॉयल रूप का हो गया है। ये ‘मैं’ शब्द समाप्त हो भाषा में भी ‘बाबा-बाबा’ शब्द आ जाये। कहने में देखो साधारण बात है, मैं योग्य हूँ ना, तो योग्य हूँ तो सैलवेशन या सेवा उसी प्रमाण मिलनी चाहिये। मैं योग्य हूँ, मैं करती हूँ, तो ये राइट है? करते तो हो ना फिर क्यों नहीं कहें करती तो हूँ! मैं रांग हूँ, राइट हूँ, कहने में तो आयेगा ना मैं करती हूँ! ... आप नहीं करती हो? करता बाबा है! वो बाप है करावनहार लेकिन करनहार तो आप हो ना। तो ‘मैं’ कहना रांग क्यों हुआ? वैसे जब ‘मैं’ शब्द भी प्रयोग करते हो तो वास्तव में ‘मैं’ शब्द किससे लगता है? आत्मा से या शरीर से? मैं कौन? आत्मा है ना, शरीर तो नहीं है? तो अगर देही अभिमानी बन, मैं आत्मा हूँ-इस स्मृति से ‘मैं’ शब्द यूज़ करते हैं तो राइट है। लेकिन ‘मैं’ शब्द बॉडी कान्सेस के रूप में अगर यूज़ करते हैं तो रांग है। सारे दिन में ये ‘मैं’ शब्द बहुत आता है और आना ही है। तो अभ्यास करो-जब भी ‘मैं’ शब्द कहते हो तो मैं कौन? वास्तव में ‘मैं’ है ही आत्मा। शरीर को ‘मेरा’ कहते हैं। तो ‘मैं’ शब्द अगर आत्म अभिमानी बनकर कहेंगे तो आत्मा को बाप स्वत: याद है। कहने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी। हूँ ही मैं आत्मा - ये अभ्यास डाल दो। जैसे ये उल्टा अभ्यास पड़ गया है और नेचरल हो गया है कि जब ‘मैं’ शब्द बोलते हो तो अपना नाम-रूप स्मृति में आ जाता है। मैं कौन हूँ? मैं फलानी हूँ। यह नेचरल हो गया है ना? सोचना नहीं पड़ता है। तो ये जो उल्टे भाव से ‘मैं’ शब्द यूज़ करते हो तभी रिज़ल्ट में मेहनत ज्यादा और प्राप्ति कम होती। कई बच्चे कहते हैं हम तो बहुत सेवा करते हैं, बहुत मेहनत करते हैं लेकिन प्राप्ति इतनी नहीं होती है। उसका कारण क्या? वरदान सबको एक है, 60 साल वालों को भी एक तो एक मास वाले को भी एक है। खजाने सभी को एक जैसे हैं। पालना सबको एक जैसी है, दिनचर्या, मर्यादा सबके लिए एक जैसी है। दूसरी-दूसरी तो नहीं है ना! ऐसे तो नहीं, विदेश की मर्यादायें और हैं, इण्डिया की और हैं, ऐसे तो नहीं? थोड़ा-थोड़ा फर्क है? नहीं है? तो जब सब एक है फिर किसको सफलता मिलती है, किसको कम मिलती है - क्यों? कारण? बाप मदद कम देता है क्या? किसको ज्यादा देता हो, किसको कम, ऐसे है? नहीं है। फिर क्यों होता है? मतलब क्या हुआ? अपनी गलती है। या तो बॉडी-कॉन्सेस वाला मैं-पन आ जाता है, या कभी-कभी जो साथी हैं उन्हों की सफलता को देख ईर्ष्या भी आ जाती है। उस ईर्ष्या के कारण जो दिल से सेवा करनी चाहिये, वो दिमाग से करते हैं लेकिन दिल से नहीं। और फल मिलता है दिल से सेवा करने का। कई बार बच्चे दिमाग यूज़ करते हैं लेकिन दिल और दिमाग दोनों मिलाके नहीं करते। दिमाग मिला है उसको कार्य में लगाना अच्छा है लेकिन सिर्फ दिमाग नहीं। जो दिल से करते हैं तो दिल से करने वाले के दिल में बाप की याद भी सदा रहती है। सिर्फ दिमाग से करते हैं तो थोड़ा टाइम दिमाग में याद रहेगा-हाँ, बाबा ही कराने वाला है, हाँ बाबा ही कराने वाला है लेकिन कुछ समय के बाद फिर वो ही मैं-पन आ जायेगा। इसलिए दिमाग और दिल दोनों का बैलेन्स रखो।

तो सुनाया डायमण्ड जुबली में क्या करना है? विशेष बचत का खाता जमा करो। ऐसे नहीं, कि सारा दिन मेरे से कोई ऐसी बात नहीं हुई, किसको दु:ख नहीं दिया, किसी से कुछ खिटखिट नहीं हुई अर्थात् गँवाया नहीं। ये तो अच्छी बात है गँवाया नहीं लेकिन जमा किया? सेवा भी की तो अपने रूहानियत से सेवा में सफलता प्राप्त की? वा सफलता जमा की? तो सेवा में समय लगाया - ये तो अच्छी बात की ना लेकिन सेवा किस विधि से की? कई कहते हैं हम तो सारा दिन इतने सेवा में बिज़ी रहते हैं जो अपना ही नहीं पता पड़ता। बिज़ी रहते हैं यह बहुत अच्छा। लेकिन सेवा का प्रत्यक्षफल जमा हुआ? कि सिर्फ मेहनत की? सेवा में समय 8 घण्टा लगाया लेकिन 8 ही घण्टे सेवा के जमा हुए? समय जमा हुआ? कि आधा जमा हुआ, आधा भागदौड़ में, सोचने में गया? श्रेष्ठ संकल्प, शुभ भावना, शुभ कामना के संकल्प जमा होते हैं। तो सारे दिन में जमा का खाता नोट करो। जब जमा का खाता बढ़ता जायेगा तो स्वत: ही डायमण्ड बन ही जाना है। अभी भी समय और संकल्प - ना अच्छे में, ना बुरे में होते हैं। तो बुरे में नहीं हुआ ये तो बच गये लेकिन अच्छे में जमा हुआ? समझा? समय को, संकल्प को बचाओ, जितना अभी बचत करेंगे, जमा करेंगे तो सारा कल्प उसी प्रमाण राज्य भी करेंगे और पूज्य भी बनेंगे। चाहे द्वापर से आप साकार रूप में तो गिरती कला में आते हो लेकिन आपका जमा किया हुआ खाता आपके जड़ चित्रों की पूजा कराता है। तो सब ये नोट करना तो मालूम पड़ जायेगा कि व्यर्थ वा साधारण समय कितना होता है? साधारण संकल्प कितने होते हैं? लेकिन एक अटेन्शन रखना - अगर मानो आपका आज के दिन जमा का खाता बहुत कम हुआ तो कम देख करके दिलशिकस्त नहीं होना। और ही समझो कि अभी भी हमको चांस है जमा करने का। अपने को उमंग-उत्साह में लाओ। अपने आपसे रेस करो, दूसरे से नहीं। अपने आपसे रेस करो कि आज अगर 8 घण्टे जमा हुए तो कल 10 घण्टे हो। दिलशिकस्त नहीं होना। क्योंकि अभी फिर भी जमा करने का समय है। अभी टू लेट का बोर्ड नहीं लगा है। फाइनल रिजल्ट का टाइम अभी एनाउन्स नहीं हुआ है। जैसे लौकिक में पेपर की डेट फाइनल हो जाती है तो अच्छे पुरूषार्था क्या करते हैं? दिलशिकस्त होते हैं या पुरूषार्थ में आगे बढ़ते हैं? तो आप भी दिलशिकस्त नहीं बनना। और ही उमंग-उत्साह में आकरके दृढ़ संकल्प करो कि मुझे अपने जमा का खाता बढ़ाना ही है। समझा? दिलशिकस्त तो नहीं होंगे? फिर बाप को मेहनत करनी पड़े! फिर बड़े-बड़े पत्र लिखना शुरू कर देंगे - बाबा क्या हो गया... ऐसा हो गया... ! बाबा बचाओ, बचाओ - ऐसे नहीं कहना। देखो आपके जड़ चित्रों से जाकर मांगनी करते हैं कि हमको बचाओ। तो आप बचाने वाले हो, बचाओ-बचाओ कहने वाले नहीं।

डबल विदेशी समझते हैं कि हमारी भी पूजा होती है? कि भारत वालों की होती है? किसकी होती है? आपकी होती है? तो सदा अपना राज्य अधिकारी स्वरूप और पूज्य स्वरूप - मैं पूज्य आत्मा हूँ, औरों को देने वाली दाता हूँ। लेवता नहीं, देवता हूँ। बाप ने तो आपेही दिया ना या आपने मांगा तब दिया? आपको तो मांगना भी नहीं आता था। भक्ति में क्या मांगते थे? एक बच्चा दे दो, एक मकान दे दो या इम्तहान में पास करा दो। वर्से के अधिकारी नहीं समझते थे और बाप ने तो वर्से में सब कुछ दे दिया। क्या अपने पास कुछ रखा है? बिना मांगे दिया है। हम विश्व के राजा बन सकते हैं-ये कभी सोच सकते थे? संगमयुगी ब्राह्मण आत्मा बन सकते हैं, ये भी कहाँ सोचते थे। तो जमा करो क्योंकि बापदादा ने देखा कि मेहनत बहुत करते हैं। लेकिन जमा का खाता अभी जितना होना चाहिये उतना नहीं है। तो जब डेट एनाउन्स हो जायेगी फिर आप कहो कि हमको तो पता ही नहीं था। पता होता तो कर लेते थे। इसलिए इस डायमण्ड जुबली में याद से, सेवा से, शुभ भावना, शुभ कामना से खाता जमा करो। समझा क्या करना है? जमा करना है। बापदादा के पास तो सबका पहुँच ही जाता है। एक मास की रिज़ल्ट अपने आप देखो। ऐसे नहीं कि यहाँ पत्र लिखकर भेजो। नहीं, ये अपने आप चेक करो और चेक करके चेंज करो। दिलशिकस्त नहीं बनो, चेंज करो। जब बाप साथ है तो बाप को यूज़ करो ना! यूज़ कम करते हो, सिर्फ कहते हो बाबा साथ है, बाबा साथ है। यूज़ करो। जब सर्वशक्तिमान साथ है तो सफलता तो आपके चरणों में दौड़नी है।

अच्छा, शिव जयन्ती वा शिवरात्रि के सम्बन्ध से आपका कम्बाइन्ड रूप कौन-सा गाया जाता है? (शिवशक्ति)। ये पक्का है? या शक्ति अलग है, शिव अलग है? तो शिवशक्ति का अर्थ ही है कि कम्बाइन्ड हैं। अलग नहीं। फिर अलग कैसे करते हो? अलग हो सकता है? तो फिर कैसे होता है? जुड़ा हुआ तो है फिर अलग कैसे होता है? जुड़ा हुआ अलग नहीं होता है लेकिन सिर्फ माया फेस ऐसा कर देती है, घुमा देती है तो किनारा हो जाता है। तो मैं शिवशक्ति हूँ - ये स्मृति आज के शिव जयन्ती की यादगार है। और पाण्डव क्या हैं? आप भी शिवशक्ति हो या शिव पाण्डव हो? क्या हो? शक्ति तो हो ना? अच्छा।

बच्चों ने पूछा था कि भविष्य में क्या सेवा होनी है? तो बाप ने पहले भी कहा है कि अभी जहाँ तक ज्यादा में ज्यादा हो सके तो बनी-बनाई स्टेज़ पर आप चीफ गेस्ट हो, इस सेवा को और बढ़ाओ। इसके लिये जो भी बड़े-बड़े एसोसिएशन्स हैं या कम्पनियाँ हैं, सोसाइटीज़ हैं उनमें विशेष निमित्त आत्माओं को परिचय दे समीप लाओ तो एक-एक की अलग-अलग सेवा करने की बजाय एक ही समय अनेक आत्माओं की सेवा हो जायेगी। इस पर और आगे अटेन्शन दे बढ़ाओ। दूसरी बात, कि अभी आप ऐसे स्पीकर तैयार करो, बड़े माइक जो हैं वो अलग चीज़ हैं, वो तो करने ही हैं, लेकिन ऐसे सम्पर्क वालों को नॉलेज से समीप लाओ जो आपके ज्ञान की बातें, आप नहीं कहो लेकिन वो सिद्ध करके बतायें तो ये बात इस कारण से यथार्थ है। अभी शान्ति और प्रेम, यहाँ तक पहुँचे हैं और यही स्पीच करते हैं कि यहाँ प्रेम मिला, शान्ति अनुभव हुई वा ब्रह्मा बाप की कमाल है, यहाँ तक आये हैं लेकिन ब्रह्मा बाप में परम आत्मा की कमाल है, अभी वहाँ तक पहुँचाना है। विदेश को बापदादा मुबारक देते हैं कि हिम्मत रख आई.पीज़. को नज़दीक लाया है और दिन प्रतिदिन हर वर्ष कुछ न कुछ आगे बढ़ रहे हैं। लेकिन अभी ऐसे कोई चाहे 10-15 हो, ज्यादा नहीं हो, लेकिन पोज़ीशन वाले हो, जिसका प्रभाव सुनने वालों पर पड़ सके ऐसे चाहे भारत में, चाहे विदेश में, ऐसे ज्ञान के समीप लाओ जो वो परमात्म ज्ञान को स्वयं समझ कर स्पष्ट करे। मेहनत है इसमें। लेकिन बाप की, परमात्म ज्ञान की प्रत्यक्षता अगर डायमण्ड जुबली के बाद भी नहीं करेंगे तो कब करेंगे! अभी सेवाकेन्द्र 62 देशों में हैं ना, लेकिन हर एक स्टेट में बड़े माइक के पहले ऐसे छोटे-बड़े स्पीकर तैयार करो। भारत में भी हर स्टेट में ऐसा स्पीकर ग्रुप या एक-दो तैयार करो। बाप की प्रत्यक्षता तब होगी जब दूसरे सिद्ध करें। जैसे अभी तक जो सेवा की है तो औरों के अनुभव से आपका परिचय सुनकर वृद्धि होती गई है। जब से औरों ने कहना शुरू किया है कि वहाँ तो स्वर्ग है, शान्ति है, प्यार है, तो एक-दो का अनुभव सुनकर वृद्धि जल्दी हुई है। तो यहाँ तक तो सेवा की है, उसकी मुबारक हो लेकिन आगे क्या करना है? ऐसा समीप लाओ। अलग में ज्ञान की मेहनत करो, संगठन में नहीं होगा। लेकिन उसके लिये मेहनत कर सम्पर्क वालों को सेवा में लगाओ। अभी धरनी तैयार की है। अभी धरनी में परमात्म ज्ञान या परमात्म पहचान का बीज डालने का लक्ष्य रखो। चाहे टाइम लगेगा, लेकिन ये भी लक्ष्य रखा तो हो गया ना? सफलता मिली ना? नहीं तो पहले सोचते थे कि विदेश से यहाँ कैसे आयेंगे? बहुत मुश्किल है। लेकिन अभी 200-250 तो आ जाते हैं ना? तो ये धरनी अभी तैयार की है, हल चलाया है, अच्छी मेहनत की है। अभी ऐसा ग्रुप तैयार करो। कम से कम चलो सर्वव्यापी की बात है या बहुत कड़ी-कड़ी प्वाइन्ट्स हैं, उसको नहीं भी वर्णन करें लेकिन इतना तो समझें कि ये परमात्म शक्ति है। ब्रह्मा की अलग नहीं, ब्रह्मा में भी परमात्म शक्ति ने कार्य किया है। तो बाप की पहचान तो मिले ना। ये परमात्म कार्य है, कोई शक्ति है - यहाँ तक आये हैं लेकिन आखिर समाप्ति तब होगी जब परमात्म पहचान मिले। तो जो अब तक किया है वो बहुत अच्छा किया है लेकिन अभी और अच्छे से अच्छा करना है। बाप जानते हैं कि मेहनत बहुत करनी पड़ती है लेकिन करनी तो होगी ना! तो ऐसा कोई प्रोग्राम बनाओ, जो ऐसे योग्य समझो उनका छोटा-छोटा ग्रुप बनाकर उन्हें समीप लाओ। चाहे एक-एक होकर करो, चाहे छोटे ग्रुप में करो। जैसा व्यक्ति वैसी सेवा करो। समझा क्या करना है?

अच्छा।

चारों ओर के जयन्ती की मुबारक देने वाले बच्चों को, सदा बाप के साथ-साथ रहने वाले कम्बाइण्ड रूपधारी बच्चों को, सदा उमंग-उत्साह के द्वारा स्वयं को और औरों को आगे बढ़ाने वाले बच्चों को, चारों ओर के सेवा में आगे बढ़ने वाले सच्चे सेवाधारी बच्चों को बापदादा की पद्म-पद्म-पद्म गुणा मुबारक हो। याद-प्यार के साथ बाप भी बच्चों की मुबारक, याद-प्यार स्वीकार कर रहे हैं। देख रहे हैं कि सभी तरफ मुबारक-मुबारक के दिल के गीत बज रहे हैं। तो ऐसे मुबारक लेने और मुबारक देने के दोनों के संगम की विशेष याद-प्यार और नमस्ते।

अच्छा एक बात आज बच्ची ने खुशखबरी सुनाई कि इस ग्रुप में ऐसे बच्चे हैं जो पूरा एक वर्ष क्रोध मुक्त रहे हैं। तो जब सेरीमनी होगी तभी ऐसे क्रोधमुक्त बच्चों का सभी मुखड़ा भी देखना और बाप भी देखेंगे। वो स्टेज पर आयेंगे। जिन्होंने हाथ नहीं उठाया हो और बने हो वो भी आ सकते हैं। लेकिन एक वर्ष क्रोध मुक्त बने हुए हो। क्या सोच रहे हो? हम भी होते तो अच्छा होता।

दादियों से

आपके त्याग और तपस्या का फल प्रत्यक्ष फल दिखा रहा है। ये 14 वर्ष की तपस्या प्रैक्टिकल में रिजल्ट के रूप में देख रहे हो। सभी चाहे देश में, चाहे विदेश में, इस वर्ष के आदि से उमंग-उत्साह में बहुत आये। क्यों? विशेषता क्या है? क्यों उमंग-उत्साह में इतने आये? (डायमण्ड जुबली है) डायमण्ड जुबली की खुशी भी है लेकिन साथ-साथ सेवा की सफलता अभी प्रत्यक्ष रूप में दिखाई दे रही है। इस कारण फल को देख करके, एक होता है स्वार्थ का फल जो अल्पकाल का होता है और दूसरा है निस्वार्थ सेवा का फल, तो अभी जो मिल रहा है वो निस्वार्थ सेवा जो इतना समय की है उसका फल सहज प्राप्त हो रहा है और इस डायमण्ड जुबली के नशे में, खुशी में और भी सेवा आगे बढ़ सकती है। आप उमंग-उत्साह से बढ़ाते जायेंगे तो सेवा बढ़ जायेगी। आप निमित्त बनी हुई आत्मायें लक्ष्य रखो तो आपके लक्ष्य की किरणें सभी को मिलेगी। होना ही है, करना ही है, आप लोगों को तो है लेकिन औरों को भी हिम्मत और उमंग दिलाने में लक्ष्य और दृढ़ रखो। ब्रह्मा बाप और शिव बाप की पहचान बच्चों को मिलनी तो है ना? समझा? (सामने बैठी हुई टीचर्स से) आप लोग सुन रहे हो ना? तो आप भुजाओं के बिना कुछ नहीं होता है। ये हैं प्लैन करने वाले, संकल्प देने वाले लेकिन संकल्प को साकार करने वाले कौन? बोलो ना हम हैं। क्यों, भुजा समझ कर करेंगे तो मैं-पन बॉडी कान्सेस का आयेगा ही नहीं। विदेश के भी आदि रत्न बैठे हैं। लहर अभी अच्छी है। लहर औरों को अभी देने की आवश्यकता नहीं है। लहर आ गई है। अभी सिर्फ उन्हों को और उमंग-उत्साह दिलाते चलो। निमित्त आत्मायें अच्छी हो और बापदादा के समीप हो। समीप हो या फॉरेन में हो? समीप हैं ना? बापदादा भी खुश होते हैं वाह मेरे राइट हैण्ड। राइट हैण्ड हैं ना? राइट हैण्ड से ही काम होता है। तो हर स्थान पर बाप के राइट हैण्ड हैं। लेकिन जो आदि रत्न निमित्त हो उन्हों को और आगे बढ़ते बढ़ाना है। एक ही काम है बस। कहाँ भी देखो सेवा में थोड़ी सी थकावट फील करते हैं या मेहनत फील करते हैं तो उन्हों को कोई न कोई सहयोग देकर उमंग-उत्साह बढ़ाओ। ये आप लोगों का काम है। समझा? जो टीचर्स हैं उसमें भी आप लोग विशेष निमित्त हो। समझते हो अपने को निमित्त? बोलो, जयन्ती बोलो। थक तो नहीं गई ना? अच्छा है सभी टीचर्स में भी अभी मैजारिटी में हिम्मत आ गई है। अभी निर्विघ्न बनने की विधि भी समझ गये हैं। पहले घबराते बहुत थे ना, अभी घबराते कम हैं, हिम्मत आई है। क्योंकि एक तरफ बाप का प्यार और दूसरे तरफ सेवा का बल तो दोनों ने अभी हिम्मत बढ़ाई है।

अच्छा-टीचर्स हाथ उठाओ। बस बापदादा सभी को यह कहते हैं कि सदा खुश रहो, सेवा में आबाद रहो।

बच्चों से मिलन मनाने के पश्चात् बापदादा ने अपने हस्तों से झण्डा फहराया।

जब यह झण्डा लहराया तो बच्चों को कितनी खुशी हो रही है। और जब विश्व में सभी के आगे झण्डा लहरेगा तो कितनी खुशियाँ होंगी! कितनी तालियाँ बजेंगी। झण्डा सदा ऊंचा रखते हैं क्यों? ऊंचे का अर्थ है कि सबकी नज़र उस तरफ जाये तो जब प्रत्यक्षता का झण्डा लहरेगा तो सबकी नज़र उसी एक बाप के तरफ होगी। आपके दिलों में तो बाप का झण्डा याद का है ही लेकिन अभी दूसरों के दिलों में ये प्रत्यक्षता का झण्डा लहराना है। ये तो कपड़े का झण्डा लहराया लेकिन प्रत्यक्षता का झण्डा सभी को मिलकर लहराना है और लहरना ही है।

जाम्बिया के भूतपूर्व राष्ट्रपति कैनेथ कौण्डा तथा उनके साथियों से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात

बहुत अच्छे टाइम पर यहाँ पहुँच गये। सेवा का चांस बहुत अच्छा ले सकते हो। अभी अपने को सिर्फ जाम्बिया के सेवाधारी समझते हो वा अपने को गॉडली मैसेन्जर समझते हो? जाम्बिया में गॉडली मैसेन्जर भी बनकर गॉडली मैसेज देंगे ना? देखो सेवा के संस्कार तो पहले से हैं ही, अभी सिर्फ सेवा में स्प्रीचुअलिटी एड करनी है। और आप जानते भी हो कि आज विश्व में स्प्रीचुअलिटी के बिना परिवर्तन होना मुश्किल है। तो आप जैसे और राजनीति सेवा के ग्रुप बनाते हैं, बने हुए हैं, ऐसे अभी आध्यात्मिक मूल्य का ग्रुप बनाओ। जैसे अभी राजनीतिक कार्य में भी आपके साथी हैं, ग्रुप है, तो ऐसा ग्रुप बनाओ जो मॉरल वैल्यु को आगे बढ़ाये। ऐसे एक-एक देश में, चाहे छोटे, चाहे बड़े कोई न कोई निमित्त बन जायेंगे तो ये वायब्रेशन फैलता जायेगा। क्योंकि आपमें पहले से ही दो विशेषतायें हैं और उन विशेषताओं से आप और जल्दी आगे बढ़ सकते हो। एक तो शुरू से दृढ़ निश्चय वाले हो, करना ही है और दूसरा सेवा के लिये अगर कुछ सहन भी करना पड़ता तो सहनशक्ति भी है। तो जहाँ दृढ़ता और सहनशक्ति है वहाँ जो चाहे वो कर सकते हैं। अच्छा है।

मॉरिशियस के भूतपूर्व शिक्षा एवं विज्ञान मंत्री भ्राता परशुराम जी से:-

ये भी लक्की है क्योंकि मनन करते रहते हो। प्लैन सोचते रहते हो-ऐसे नहीं ऐसे है, ऐसे नहीं ऐसे। तो जो मनन शक्ति वाले होते हैं उसको बाप की भी मदद मिलती है। जो मुश्किल काम होता है ना वो सहज हो जाता है। तो अभी तक जो किया है वो बहुत अच्छा किया है और आगे भी करना ही है। सोचेंगे, करेंगे.. नहीं। करना ही है। जो ये सोचते हैं ना - देखेंगे, करेंगे तो जो विघ्न आते हैं उसमें पीछे हट जाते हैं। और जो दृढ़ संकल्प रखते हैं कि करना ही है वो पास हो जाते हैं। चाहे कितनी भी ऊंची दीवार आ जाए लेकिन पार हो जाते हैं। दीवार छोटी हो जाती है और स्वयं शक्तिशाली बड़े हो जाते हो। इसलिए हिम्मत और बाप का साथ ये नहीं छोड़ना।

(रिट्रीट में आये हुए अन्य गेस्ट को देखकर) इतने सभी मिलकर जो चाहे सो कर सकते हैं। अपने शक्तियों को आगे कार्य में लगाते जाओ तो बढ़ती जायेंगी। क्योंकि अभी स्प्रीचुअल पॉवर का भी पता पड़ गया। अभी स्प्रीचुअल पॉवर का अनुभव हो गया ना? अच्छा है, ग्रुप अच्छा है। ये और ग्रुप को भी लायेंगे। जिसकी भावना स्प्रीचुअलिटी के तरफ होती है उसको भावना का फल अवश्य मिलता है। अभी गॉडली मैसेज देने में भी सहयोगी बनना ही है। विदाई के समय बापदादा ने विदेश सेवाओं के सिल्वर जुबली की मुबारक दी तथा पूरे वर्ष जो क्रोध मुक्त रहे हैं उन्हें स्टेज पर बुलाया:-

सभी ने अच्छी तरह से मनाया? अपने को बनाया? मनाना अर्थात् बनना। तो मनाया भी और अपने को बनाया भी। आज विशेष विदेश के सेवा स्थापन होने की सिल्वर जुबली है। तो सभी सिल्वर जुबली वालों को खास लण्डन और हांगकांग और नैरोबी, लुसाका...जहाँ भी सेवा की और जिन्होंने भी सेवा की उन सबको बहुत-बहुत मुबारक! मुबारक!! मुबारक!!! तो सिल्वर जुबली भी मना लेना। खास डबल विदेशियों की सिल्वर जुबली है। आप लोगों की है सिल्वर जुबली? (21 वर्ष हुए) तो भी मुबारक हो जो 21 वर्ष चले हैं। हाथ उठाओ जो 21 वर्ष के हैं।

क्रोध मुक्त रहने वालों से

अच्छा हिम्मत का काम किया है लेकिन इसको छोड़ना नहीं। सदा रहेंगे ना? कि थोड़ा ढीला हो जायेगा? ढीला नहीं होना है और मज़बूत होना है।